
जहाँ बरगद का पेड़ है,सरसों का ढ़ेर है
गाय,भैंस,बकरी और जहाँ भेड़ है,
दुखिया की शादी में
सारा गाँव एक परिवार बन जाते हैं,
चलो हम तुम्हें अपना गाँव दिखलाते है...!!
जहाँ धनियाँ की क्यारी है,घर के पीछे बाड़ी है
शुद्धता और पवित्रता में गाँव शहर पर भारी है,
गाँव के लोग तरण-ताल में नहीं
तलाब और नदियों में नहाते हैं,
चलो हम तुम्हें अपना गाँव दिखलाते है...!!
जहाँ खेत है खलिहान है, बड़े-बड़े मैदान है
गाँव के बच्चों के लिए गर्लफ्रैंड या बॉयफ्रेंड नहीं
माँ-बाप ही दुनिया-जहान हैं,
आज भी माँ-बाप और गुरुजन
जहाँ सबसे पूजनीय कहलाते हैं,
चलो हम तुम्हें अपना गाँव दिखलाते है...!!
जहाँ बर्गर-पिज्जा या ममोस से नहीं
मकई की रोटी और बथुआ के साग से थाली सजाते है,
जहाँ मेहमानों को बियर-वोडका नहीं
गाय का शुद्ध दूध पिलाते हैं,
जहाँ ओके,बाय-बाय, टाटा नहीं
श्रद्धा से पिता के पाँव छुए जाते हैं,
जहाँ पीपल के छाँव की शीतलता
A.C. की हवा से कहीं ज्यादा भाते हैं,
चलो हम तुम्हें अपना गाँव दिखलाते है...!!
2 Comments
ये कविता देखकर हैरान हो गया मन भबुक हो उठे । ThankYou
ReplyDeleteNice poem on village
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