
चल साधो कोई देश
यहाँ का सूरज डूबा जाए
यहाँ की नदियाँ प्यासी हैं
यहाँ घनघोर उदासी है।
यहाँ के दिन भी जले जले
यहाँ की भोर भी बासी है |
साध सक जो साध लिया
अब बचा आधा दिन
ये पल भी अब काट ले पगले
अंगुली पर गिन-गिन
कौन करे यहाँ सूरज रखवाली रे
रात बहुत है काली आने वाली रे
किसे बात करेगा साधु
किस पर करे भरोसा
चिड़ियों को नहीं दाना-पानी
गिद्धों ने भोज परोसा
नदी की रेत पे उग आई झारी रे
बस्ती-बस्ती बजती खली थाली रे
आग लगी भाई साधु झोपड़िया
कोई ने उसे बुझाये
उसी आग से जलाके बिड्डी
धुवा वही उड़ाए
मन के राग बजाये हाथ से ताली रे
कौन सुने अब बात फकीरो वाली रे
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